0
Bharat Ke Ram (भरत के राम) - Narci
0 0

Bharat Ke Ram (भरत के राम) Narci

Bharat Ke Ram (भरत के राम) - Narci
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं
साँसें उस दिन ही रुक जाए
साँसें उस दिन ही रुक जाए
जिस दिन राम को मैं बिसराऊ
राम ही तन में, राम ही मन में
राम के बिन कहीं, चैन ना पाऊं

न थी खबर भरत को ये की
राम जा चुके थे वन
जब पता लगा तो काँपी
आत्मा और पूरा तन
स्वयं की माता पे था
रोष आया निरवधि
पूछा कैसे क्रूर हुआ
माता का हाँ कोमल मन ?
पिता का साथ क्यूँ हटा
क्या था मेरा प्रभु कसूर ?
दिन ऐसा क्यूँ दिखा
विधाता क्यूँ बना क्रूर ?
बेसहारा प्राणी तेरा
टूट चूका पूरा है
पिता समान भाई को भी
कर दिया क्यूँ ऐसे दूर ?
भाई लखन और सीता माँ भी
सोचते क्या होंगे ही
राज छीना माँ के संग और
अब बना है ढोंगी ही
बिन मुझे हाँ राम के
स्वीकार नहीं राज्य है
बिन मुझे हाँ राम के
ना गद्दी चहिए सोने की
भाई ने ठाना संग सेना के
जायेंगे मिलने राम को
पड़ पैरों पे माँग क्षमा
मैं आऊँगा लेके राम को
विरह ये विधाता मेरे
प्राण खींचे ना जाए कहीं
मरना भी यदि तय है तो
आगे देखूँ राम को
साथ चली थी सेना, भाई
गुरु और तीनो मातायें
प्रकृति से पूछ रहे थे
कहाँ पे मेरे भ्राता है ?
उड़ते पंछी, वनों के वृक्षों
दे दो हाँ संकेत कोई
राह कौनसा प्रभु राम को
मुझे बता दो जाता है
पैरों में ना पादुकायें
बेचैनी है चहरे पे
माथे पे पसीना और
पैर चले न धैर्य से
नदी यदि हाँ राह भी रोके
उसमें भी वो तैरेंगे
काँटों की वो बेले लम्बी
हास कर तन पर पहनेंगे
मिलने हेतू प्रभु राम से
ह्रदय बड़ा ही पागल है
तूफानों के वार भयानक
सेह रहे है साहस से
प्रकृति को कह रहे है
ले ले चाहे प्राण मेरे पर
दो भाइयों को उससे पहले
मिलने देना आपस में
भरत यदि भूमि है तो
राम उसपे बारिश है
राम नाम के बिना भरत
पूरा ही तो खाली है
चाल लड़खड़ाती मेरी
राम ने संभाली है
राम पूरा वृक्ष
ये प्राणी छोटी डाली है
Comments (0)
The minimum comment length is 50 characters.
Information
There are no comments yet. You can be the first!
Login Register
Log into your account
And gain new opportunities
Forgot your password?