
Pokhiera Ghaam Ko Jhulka Narayan Gopal
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पोखिएर घामको झुल्का
भरि संघारमा
तिम्रो जिन्दगीको ढोका
खोलूँ खोलूँ लाग्छ है
खोलूँ खोलूँ लाग्छ है
सयपत्री फूल सितै
फक्री आँगनमा
बतासको भाका टिपी
बोलूँ बोलूँ लाग्छ है
बोलूँ बोलूँ लाग्छ है
कतिकति आँखाहरु बाटो
छेक्न आउँछन
कतिकति आँखाहरु बाटो
छेक्न आउँछन
परेलीमा बास माग्न
कति आँखा धाउँछन्
यति धेरै मानिसका
यति धेरै आँखाहरु
मलाइ भने तिम्रै आँखा
रोजूँ रोजूँ लाग्छ है
रोजूँ रोजूँ लाग्छ है
उडूँ उडूँ लाग्छ किन
प्वाँख कैले पलायो
उडूँ उडूँ लाग्छ किन
प्वाँख कैले पलायो
भरि संघारमा
तिम्रो जिन्दगीको ढोका
खोलूँ खोलूँ लाग्छ है
खोलूँ खोलूँ लाग्छ है
सयपत्री फूल सितै
फक्री आँगनमा
बतासको भाका टिपी
बोलूँ बोलूँ लाग्छ है
बोलूँ बोलूँ लाग्छ है
कतिकति आँखाहरु बाटो
छेक्न आउँछन
कतिकति आँखाहरु बाटो
छेक्न आउँछन
परेलीमा बास माग्न
कति आँखा धाउँछन्
यति धेरै मानिसका
यति धेरै आँखाहरु
मलाइ भने तिम्रै आँखा
रोजूँ रोजूँ लाग्छ है
रोजूँ रोजूँ लाग्छ है
उडूँ उडूँ लाग्छ किन
प्वाँख कैले पलायो
उडूँ उडूँ लाग्छ किन
प्वाँख कैले पलायो
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