
Dard Sonu Nigam
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मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
ख़ुशियों से मिलना भूल गए
तुम इतना क्यूँ हमसे दूर गए?
कोई किरण इक दिन आएगी
तुम तक हमको लेके जाएगी
मैं राह पे आँख बिछा के ही सोऊँ
मैं राह पे आँख बिछा के ही सोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
पंख अगर होते, उड़ के चला मैं आता, रुकता ना एक पल
क़ैद ये कैसी? ख़ुदा, साँस भी रूठी है सीने में आजकल
आजकल, आजकल, आजकल
आजकल, आजकल, आजकल
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
ख़ुशियों से मिलना भूल गए
तुम इतना क्यूँ हमसे दूर गए?
कोई किरण इक दिन आएगी
तुम तक हमको लेके जाएगी
मैं राह पे आँख बिछा के ही सोऊँ
मैं राह पे आँख बिछा के ही सोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
जो तुझे लगता बारिश है, वो मैं हूँ जो रोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
पंख अगर होते, उड़ के चला मैं आता, रुकता ना एक पल
क़ैद ये कैसी? ख़ुदा, साँस भी रूठी है सीने में आजकल
आजकल, आजकल, आजकल
आजकल, आजकल, आजकल
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
मैं दर्दों को पास बिठकर ही सोऊँ
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