![Roz Sham Aati Hai Magar Aesi - Lata Mangeshkar](/uploads/posts/2022-05/2290197.png)
Roz Sham Aati Hai Magar Aesi Lata Mangeshkar
"Roz Sham Aati Hai Magar Aesi" is a poignant ghazal by Lata Mangeshkar, released in 1990. The song explores themes of longing and nostalgia, reflecting on the beauty of evening and the emotions it evokes. Its melodic structure incorporates soft instrumentation, creating a serene atmosphere. The song is cherished for its lyrical depth and emotional resonance, highlighting Mangeshkar's iconic vocal delivery. #Ghazal
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रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
ये आज मेरी ज़िंदगी में कौन आ गया?
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
डाली में ये किसका हाथ कर इशारे बुलाए मुझे?
डाली में ये किसका हाथ कर इशारे बुलाए मुझे?
झूमती चंचल हवा छू के तन गुदगुदाए मुझे
हौले-हौले, धीरे-धीरे कोई गीत मुझको सुनाए
प्रीत मन में जगाए, खुली आँख सपने दिखाए
दिखाए, दिखाए, दिखाए, खुली आँख सपने दिखाए
ये आज मेरी ज़िंदगी में कौन आ गया?
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं
अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं
हँस-हँस के है देखती, जो भी मूरत बनाती हूँ मैं
जैसे कोई मोहे छेड़े, जिस ओर भी जाती हूँ मैं
डगमगाती हूँ मैं, दीवानी हुई जाती हूँ मैं
दीवानी, दीवानी, दीवानी, दीवानी हुई जाती हूँ मैं
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
ये आज मेरी ज़िंदगी में कौन आ गया?
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
डाली में ये किसका हाथ कर इशारे बुलाए मुझे?
डाली में ये किसका हाथ कर इशारे बुलाए मुझे?
झूमती चंचल हवा छू के तन गुदगुदाए मुझे
हौले-हौले, धीरे-धीरे कोई गीत मुझको सुनाए
प्रीत मन में जगाए, खुली आँख सपने दिखाए
दिखाए, दिखाए, दिखाए, खुली आँख सपने दिखाए
ये आज मेरी ज़िंदगी में कौन आ गया?
रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी ना थी
रोज़-रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी ना थी
अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं
अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं
हँस-हँस के है देखती, जो भी मूरत बनाती हूँ मैं
जैसे कोई मोहे छेड़े, जिस ओर भी जाती हूँ मैं
डगमगाती हूँ मैं, दीवानी हुई जाती हूँ मैं
दीवानी, दीवानी, दीवानी, दीवानी हुई जाती हूँ मैं
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