[Bharat Chauhan & Seedhe Maut "Shaayar" के बोल]
[Intro: Bharat Chauhan]
सब कुछ लिखूँ या कुछ भी ना लिखूँ?
क्या ही लिखूँ के तुझको ना लिखूँ?
[Verse 1: Bharat Chauhan]
भटक रहा हूँ इन अँधेरों में यूँ ही
नाराज़ चाँद है या तारों की कमी?
जो ख़्वाब देखे थे इन आँखों ने कभी
उन ख़्वाबों की कहीं है राख भी नहीं
कहा था मुझको जिसने "घर" कभी
रुख़सत हुआ, जला गया वो सभी
वफ़ा से ही मुझे वफ़ात की उम्मीद
हैं ग़म मिले तो आज वो ही करीब
[Chorus: Bharat Chauhan]
मेरी शायरी से ना मुझको आंको
जहाँ कलम छोड़ूँ मैं, वहाँ मुझमें झाँको
मेरी शायरी से ना मुझको आंको
जहाँ कलम छोड़ूँ मैं, वहाँ मुझमें झाँको
[Verse 2: Calm]
कलम मैं छोड़ूँ जब, तुझे मैं दिखूंगा जैसा हूँ असल में मैं
दिखूंगा तुझे जब आँखों से पर्दा हटाएगी तू बगल मेरे
पर बगल में रहना तू, रहना तू असल, ना किसी की नकल तू रह
और अगर तू नकल तो तेरी इस कमल-सी शकल का करूँ क्या मैं?
ये शायरी है तेरे लायक नहीं तो शायद ही तेरे किसी काम आएगी
और अब भी है खटकती तेरी यहाँ कमी
ये ख़ाली घर है जैसे सूखी कोई नदी
और तू है जो यहाँ आज जलपरी बनी
पर है समंदर फ़िर भी खारा ही तो ही
ये खेल है ऐसा जिसमें फँस चुके हैं मैं और आप भी
तो क्या हुआ अगर मैं लिखते वक्त बनूँ शराबी?
और इस समय इन चीज़ों में नहीं दिखती कोई ख़राबी
जब गुज़रेगा ये पल तो आएगी नहीं तू याद ज़रा भी
[Intro: Bharat Chauhan]
सब कुछ लिखूँ या कुछ भी ना लिखूँ?
क्या ही लिखूँ के तुझको ना लिखूँ?
[Verse 1: Bharat Chauhan]
भटक रहा हूँ इन अँधेरों में यूँ ही
नाराज़ चाँद है या तारों की कमी?
जो ख़्वाब देखे थे इन आँखों ने कभी
उन ख़्वाबों की कहीं है राख भी नहीं
कहा था मुझको जिसने "घर" कभी
रुख़सत हुआ, जला गया वो सभी
वफ़ा से ही मुझे वफ़ात की उम्मीद
हैं ग़म मिले तो आज वो ही करीब
[Chorus: Bharat Chauhan]
मेरी शायरी से ना मुझको आंको
जहाँ कलम छोड़ूँ मैं, वहाँ मुझमें झाँको
मेरी शायरी से ना मुझको आंको
जहाँ कलम छोड़ूँ मैं, वहाँ मुझमें झाँको
[Verse 2: Calm]
कलम मैं छोड़ूँ जब, तुझे मैं दिखूंगा जैसा हूँ असल में मैं
दिखूंगा तुझे जब आँखों से पर्दा हटाएगी तू बगल मेरे
पर बगल में रहना तू, रहना तू असल, ना किसी की नकल तू रह
और अगर तू नकल तो तेरी इस कमल-सी शकल का करूँ क्या मैं?
ये शायरी है तेरे लायक नहीं तो शायद ही तेरे किसी काम आएगी
और अब भी है खटकती तेरी यहाँ कमी
ये ख़ाली घर है जैसे सूखी कोई नदी
और तू है जो यहाँ आज जलपरी बनी
पर है समंदर फ़िर भी खारा ही तो ही
ये खेल है ऐसा जिसमें फँस चुके हैं मैं और आप भी
तो क्या हुआ अगर मैं लिखते वक्त बनूँ शराबी?
और इस समय इन चीज़ों में नहीं दिखती कोई ख़राबी
जब गुज़रेगा ये पल तो आएगी नहीं तू याद ज़रा भी
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