झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु-झु
के उजला ही उजला शहर होगा
जिसमें हम तुम बनायेंगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से
जिसमे होगा ना बाज़ुओं का डर
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
मख़मल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
मख़मल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
कोनों में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौकट भी रेशम सी होंगी
चंदन सी लिपटी हां सेहन भी होगी
संदल की खुशबू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाजा खोलेंगे झट से
डोलेंगे महकी हवा के हां झोंके
आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगों के
आंगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीलें छिटक के
पावों को नंगा जो करके चलेंगे
चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु-झु
के उजला ही उजला शहर होगा
जिसमें हम तुम बनायेंगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से
जिसमे होगा ना बाज़ुओं का डर
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
झु-झु-झु झु-झु-झु-झु-झु
मख़मल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
मख़मल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
कोनों में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौकट भी रेशम सी होंगी
चंदन सी लिपटी हां सेहन भी होगी
संदल की खुशबू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाजा खोलेंगे झट से
डोलेंगे महकी हवा के हां झोंके
आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगों के
आंगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीलें छिटक के
पावों को नंगा जो करके चलेंगे
चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
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